
हिन्दू धर्म (Hindu religion)में जब भी किसी कार्य की शुरुआत की जाती है तो उसके पहले पूजा जरुर कराई जाती है। किसी का जन्मदिन हो, गृह प्रवेश, नया ऑफिस या दीपावली की पूजा हो सभी में पूजा होती है और इन पूजा में हवन जरुरी रूप से होता है। इस पूजा के दौरान हम सभी एक चीज करते हैं और वो है स्वाहा बोलना। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हम स्वाहा क्यों बोलते हैं। तो आइये हम बताते हैं।
पौराणिक मान्यता
ऐसा माना जाता है कि हवन के मंत्र के साथ बोलने वाले शब्द ‘स्वाहा’ अर्थ है सही रीति से पहुंचाना, मतलब किसी भी वस्तु को अपने प्रिय तक सुरक्षित और उचित तरीके से पहुंचाने के लिए स्वाहा शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं पौराणिक मान्यता है कि ‘स्वाहा’अग्नि देवता की अर्धागिनी हैं, इसलिए हवन के दौरान स्वाह शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, हवन तब तक सफल नहीं होता, जब तक देवता गण हवन का ग्रहण ना कर लें। स्वाहा के माध्यम से अर्पण से ही देवता गण हवन को स्वीकार करते हैं।
यह भी है एक वजह
साथ ही इसके पीछे एक और रोचक कथा है। माना जाता है कि ‘स्वाहा’ प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। इनकी शादी अग्नि देवता के संग हुई थी। अग्निदेव अपनी पत्नी ‘स्वाहा’ के जरिए ही हविष्य (हवन सामग्री) ग्रहण करते हैं और उन्हीं के जरिए ही हविष्य आह्वान किए गए देवता को प्राप्त होता है।
भगवान श्रीकृष्ण का वरदान
वहीं, इससे जुड़ी एक और रोचक कथा है। इस कथा के अनुसार, ‘स्वाहा’ प्रकृति की एक कला थी, जिसका विवाह अग्नि के साथ देवताओं के कहने पर संपन्न हुआ था। कहते हैं भगवान श्रीकृष्ण ने स्वंय ‘स्वाहा’ को वरदान दिया था कि वे केवल उसी के माध्यम से हविष्य को ग्रहण कर पाएंगे। इसीलिए कोई भी हवन तब तक पूरा नहीं माना जाएगा, जब तक आह्वान करते समय स्वाहा शब्द का प्रयोग ना हों।