नालायक बच्चों पर ‘नया कानून’ कसेगा नकेल, मां-बाप को सताया तो जाओगे जेल …

आज के आधुनिक होते भारत की विडंबना यही है कि दूसरे किस्म के बच्चों की तादाद गिर रही है. आज बच्चे अपने माता-पिता को एक बोझ की तरह देख रहे हैं. ऐसा बोझ जिसे वो ढोना नहीं चाहते. शायद इसी लिए श्रवण कुमार के इस भारत में मां-बाप की सेवा करने के लिए भी कानून बनाने की जरूरत पड़ी है. इसकी पहल बिहार सरकार ने कर दी है।

क्या कहता है नया कानून

बच्चों के लिए बूढ़े माता-पिता की सेवा करना जरूरी होगा.
ऐसा न करने पर बच्चों को जेल हो सकती है.
माता-पिता का अपमान करना भी बच्चों को भारी पड़ेगा.
क्योंकि ऐसा करने पर उन पर `5,000 का जुर्माना लगेगा.
मां-बाप का अपमान करने पर 3 महीने की जेल भी हो सकती है.
जेल होने पर जमानत पर बाहर आना भी संभव नहीं होगा.
कानून में माता-पिता की संपत्ति के लिए प्रावधान किए गए हैं.
जिसके मुताबिक बच्चों को संपत्ति तब मिलेगी जब माता पिता उनके साथ रहें.
संपत्ति अपने नाम होने के बाद माता-पिता को घर से निकाला तो करार रद्द हो जाएगा.
इसे समाज में बढ़ती कुरीति कहें या माता पिता और बच्चों के बीच रिश्तों की कमजोर होती डोर, समझ नहीं आता. लेकिन, आंकड़े बूढ़े मां-बाप का दर्द बखूबी बयां करते हैं.

देश के करीब 30% माता-पिता अत्याचार का शिकार हैं.
ज्यादातर मामलों में बुजुर्गों को उनकी बहू सताती है.
39% मामलों में बुजुर्गो ने बदहाली के लिए बहुओं को जिम्मेदार माना है.
सताने के मामले में बेटे भी ज्यादा पीछे नहीं हैं.
38 फीसदी मामलों में बेटों को दोषी पाया गया है.
मां-बाप को तंग करने के मामले में बेटियां भी पीछे नहीं हैं.
20% बेटियां भी अपने मां बाप पर जुल्म ढा रही हैं.
बुजुर्गों को परिवार वालों की पिटाई का शिकार होना पड़ता है.
35% माता-पिता को करीब रोजाना परिजनों की पिटाई का शिकार होना पड़ता है.
79% माता-पिता को लगातार अपमानित किया जाता है.
76% को अक्सर गालियां और उलाहना सुनने को मिलती हैं.
देश के चाहे छोटे शहर हों या बड़े, गांव हों या कस्बे, माता-पिता के हालात कमोबेश एक जैसे ही हैं. रोज की प्रताड़ना, रोज होता अपमान, फिर चाहे मामला संपत्ति का हो या फिर अगली पीढ़ी के लिए उसी संपत्ति को बनाने वाले मां बाप की देख रेख का, बच्चे हाथ पीछे खींचते नजर आ रहे हैं. लेकिन, बेचारे मां बाप की स्थिति को वो अपने आंखों से बहते आंसुओं का दर्द भी बयां करने बचते हैं. यहां जरूरी है उन बच्चों ये समझने की माता-पिता जिंदगी में आगे बढ़ने की सीढ़ी नहीं. बल्कि, वो दरख्त हैं जिसके साये में छोटी कलियों ने खिलना सीखा था और जब आज वो दरख्त बूढ़ा हो गया हो तो उसे उनके सहारे की जरूरत है न की उलाहना की.

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