तो इस वजह से नल और नील ने Ramsetu के बाद नहीं बनाया कोई और पुल ….

because of this Nal and Neel did not build any other bridge after Ramsetu

पृथ्वी के सबसे पहले इंजीनियर के अगर किसी को उपाधि दी जाती है तो वे हैं नल और नील। और उपाधि दें भी क्यों न, इन दोनों वानरों ने सीता माता की खोज में लंका तक पहुंचने के लिए रामसेतु जैसे बांध की जो नींव राखी थी।

उन्होंने जांच मुआयना और सर्वे के बाद समुद्र पर पत्थर बिछाकर ये पुल बांधा था. राम की वानर सेना का जब रावण की हार के बाद युद्ध खत्म हुआ तो उन दोनों ने क्या किया.

अगर पूछा जाए तो देश का पहला बड़ा पुल समुद्र पर कितने बांधा था तो सबूतों के आधार पर कहा जा सकता है कि ये रामसेतु था. सेटेलाइट्स की रिपोर्ट्स और मौजूदा जांच-पड़ताल के साथ वैज्ञानिक निष्कर्ष भी कहते हैं कि रामेश्वर से श्रीलंका तक एक पुल बनाया गया था. क्योंकि समुद्र के पानी के अंदर पत्थरों की एक बड़ी लकीर लंका तक पहुंचती देखी गई.

ये पुल कोई छोटा नहीं था बल्कि कई किलोमीटर का था. तब इंजीनियरिंग की पढाई नहीं होती थी लेकिन नल नील जैसे दो वानरों ने ये करके दिखाया था. हालांकि इन वानरों में एक के पिता विश्वकर्मा को माना गया, जिन्हें देवताओं का वास्तुविद् और भवन निर्माण का विशेषज्ञ माना जाता था.

कौन थे नल और नील


अब जानते हैं कि ये दोनों वानर यानि नल और नील कौन थे. हिंदू महाकाव्य रामायण में, नील को नीला भी कहा गया है. वह राम की सेना में एक वानर सरदार थे. वह राजा सुग्रीव के अधीन वानर सेना के प्रधान सेनापति थे. श्रीराम ने जो युद्ध रावण के खिलाफ लड़ा और उसे हराया, उस लड़ाई में नील सेना का नेतृत्व कर रहे थे.

तब वरुण ने कहा- नल और नील पुल बना सकते हैं

वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि जब श्रीराम समुद्र से रास्ता देने का अनुरोध करते हैं और इस पर समुद्र की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती तो राम नाराज समुद्र पर वाण वर्षा करते हैं. ये सूखने लगता है. तब वरुण राम के सामने आकर कहते हैं कि आपकी सेना में दो ऐसे वानर हैं, पुल बना सकते हैं. वो इस कला में एक्सपर्ट हैं. वो अगर समुद्र पर पत्थर रखेंगे तो ये डूबेगा नहीं.

दोनों तेजी से समुद्र पर पुल को बनाते हैं


नल और नील विश्वकर्मा के पुत्र होने के कारण वास्तुकार की विशेषता रखते थे. इसके बाद फिर पुल का निर्माण शुरू होता है. वानर सेना नल और नील को पत्थर देती जाती है. जिस पर श्रीराम का नाम लिखा जाता है. ये पत्थर समुद्र में डूबते नहीं. दोनों भाई तेजी से लंका तक एक पुल का निर्माण करते हैं. इस पुल को बनाने में पत्थरों के साथ भारी वृक्षों की लकड़ियों का भी इस्तेमाल होता है.

नल और नील दोनों अपने काम में एक्सपर्ट थे

नल और नील 05 दिनों में 80 मील यानि दस योजन का पुल पूरा कर देते हैं. राम और उनकी पूरी सेना इसी से लंका पहुंचती है. फिर युद्ध को जीतने के बाद इसी से वापस लौटती है. हालांकि रामायण के कुछ संस्करणों में इसका मुख्य श्रेय नल को दिया गया है और नील को मुख्य सहायक बताया गया है. लेकिन कुछ रामायणों में कहा गया है कि दोनों भाई मिलकर ये पुल तैयार कर डालते हैं.

रामायण पर दोनों भाइयों के जन्म पर भी टिप्पणी करती है. बकौल उसके विश्वकर्मा के सानिध्य में आने से नल-नील की माता उन्हें जन्म देती है.रामचरितमानस ने पुल निर्माण के लिए नल और उसके भाई नील दोनों को श्रेय दिया है.

नल और नील ऋषियों ने उनकी शरारत पर क्या श्राप दिया


नल और नील को लेकर एक बात और भी कही जाती है कि ये दोनों ही बचपन में बहुत शरारती थे. ऋषियों द्वारा पूजी गईं मूर्तियों को पानी में फेंक देते थे.एक उपाय के रूप में ऋषियों ने फैसला किया कि उनके द्वारा पानी में फेंका गया कोई भी पत्थर डूबेगा नहीं.

हनुमान क्यों उनसे नाराज हो गए थे


राम सेतु बनाते समय एक वाकया ऐसा हुआ जिससे हनुमान ने अपमानित महसूस किया. रामायण के तेलुगु और बंगाली रूपांतरों के साथ-साथ जावानीस छाया नाटक नल और हनुमान के बीच एक तर्क के बारे में बताते हैं. हनुमान को ये खराब लगता है कि नल “अशुद्ध” बाएं हाथ से उनके द्वारा लाए पत्थरों को लेता है. फिर उन्हें समुद्र में रखने के लिए “शुद्ध” दाहिने हाथ का उपयोग करता है. तब राम हनुमान को शांत करते हैं. समझाते हैं कि श्रमिकों की परंपरा बाएं हाथ से लेने और वस्तु को दाईं ओर रखने की है.

लंका में सेना के लिए आवास बनाते हैं


कम्ब रामायण ये भी बताती है कि नल लंका में राम की सेना के लिए रहने के लिए अस्थाई आवास भी बनाते हैं. ये रामायण कहती है कि नल रामसेना के लिये सोने और रत्नों के तम्बुओं का एक नगर बनाता है. अपने लिए बांस और लकड़ी और घास की क्यारियों का एक साधारण सा घर बनाता है.

नल और नील युद्ध भी लड़ते हैं


रावण और उसकी राक्षस सेना के खिलाफ राम के नेतृत्व में युद्ध में नल और नील दोनों युद्ध लड़ते हैं. रावण के पुत्र मेघनाथ द्वारा चलाए गए बाणों से नल गंभीर तौर पर घायल भी होते हैं लेकिन बच जाते हैं. फिर कई राक्षसों का वध भी करते हैं.

युद्ध के बाद वो क्या करते हैं


युद्ध के बाद नल और नील सुग्रीव के मंत्री बन जाते हैं. वह राज्य के आवास के लिए प्रबंध का काम देखते हैं. हालांकि अपने बाद के जीवन में वो वास्तुविद के तौर पर कोई बड़ा काम तो नहीं करते लेकिन मंत्री के तौर पर लगातार उपयोगी सलाह सुग्रीव को देते हैं. बाद में जब श्रीराम अयोध्या में अश्वमेघ यज्ञ करते हैं तो नल और नील दोनों अश्व की रक्षा के लिए उसके साथ जाते हैं. कुछ जगहों पर नील को विश्वकर्मा का पुत्र बताया गया तो नल को उनका साथी लेकिन कुछ जगहों पर दोनों भाई के तौर पर दिखाया गया है.

रावण के खिलाफ युद्ध के बाद नल और नील मुख्य तौर पर किष्किंधा में राजा सुग्रीव के साथ राजकाज के काम में शामिल हो जाते हैं. लेकिन गाहे – बगाहे अयोध्या श्रीराम के पास भी उनके जरूरी आयोजनों में जाते हैं. कहा जाता है कि अयोध्या में कुछ भवन निर्माण को लेकर भी वह अपनी सलाह देते हैं. लेकिन राम सेतु जैसा काम वह फिर अपने जीवन में आगे नहीं करते.

क्या है राम सेतु


रामसेतु (Ramasetu) भौतिक रूप में उत्तर में बंगाल की खाड़ी को दक्षिण में शांत और स्वच्छ पानी वाली मन्नार की खाड़ी से अलग करता है. भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच उथली चट्टानों की एक चेन है. इस इलाके में समुद्र बेहद उथला है. समुद्र में इन चट्टानों की गहराई सिर्फ़ 3 फुट से लेकर 30 फुट के बीच है. इसे भारत में रामसेतु व दुनिया में एडम्स ब्रिज के नाम से जाना जाता है. इस पुल की लंबाई लगभग 48 किमी है.

बता दें रामसेतु को प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। यही वो एक मात्र रास्ता था जिसकी वजह से श्री राम और उनकी पूरी वानर सेना लंका तक पहुंची। यह दुनिया का पहला रहस्य्मयी ब्रिज है जिसकी खोजबीन आज तक बड़े बड़े वैज्ञानिक कर रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

महाभारत के श्रीकृष्ण ने IAS पत्नी के खिलाफ कराई एफआईआर स्त्री की इस चीज पर मरते है पुरुष… 200 पार जाएगा यह शेयर, मालामाल हो सकते हैं आप ब्रह्मांड का बर्फीला चंद्रमा मिल गया, सतह में छिपा है विशालकाय महासागर खाटू श्याम बाबा की कहानी… इस वजह से Shri Khatu Shyam Baba ji को कहते हैं हारे का सहारा